हमारे पूर्वज देवता या बंदर आपने कभी आम के पेड़ पर नींबू को उगते देखा है फल तो बीज से ही निकलता है। इस सृष्टि पर अलग अलग वेराइटी है। फल फूल पशु पक्षी और मनुष्य सब प्रकृति की देन है और इसमें मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ रचना है जो प्रकृति को भी बदल सकती है यानि मनुष्य और प्राकृति एक दूसरे के साथी है। सृष्टि रचना के समय दोनों ही सतोप्रधान थे। मनुष्य सतोप्रधान थे यानि सातों गुनो से भरपूर थे जैसे पवित्रता ,ज्ञान,सुख, शांति,शक्ति,प्रेम और आनंद और इन गुणों के कारण उनमे दैवीय गुण जैसे धैर्यता,नम्रता,सहनशीलता,शीतलता, हर्षितमुखता विधमान थे और इसलिए वह देवता कहलाये। मनुष्य की शारीरिक बनावट आज भी वही है परंतु गुणों के अभाव के कारण आज वे देवता की जगह मनुष्य कहलाते हैं। वास्तव में मनुष्य जाति और पशु जाति दोनों बिल्कुल अलग हैं आज मनुष्य अपना कल भूल गया है उसके गुण और शक्तियां कम होने से उनकी जगह विकारो ने ले ली है जैसे काम क्रोध लोभ मोह अहंकार ईर्ष्या द्वेष नकल आदि ओर क्योकि बंदर में सर्वाधिक विकार होते है तो वह अपनी तुलना बंदर से कर बैठा है और अपने को बंदर का ही श्रेष्ठ रूप मानने लगा और अपने पूर