Skip to main content

Posts

Showing posts from July, 2020

हम कौंन सा मार्ग अपनाएं

वैसे तो हम सभी अपने को ज्ञानी समझते हैं परंतु ज्ञान क्या है यह समझने के लिए ज्ञान की विशेषताओ को समझना आवश्यक है। ज्ञान ही व्यक्ति को उदार ,सहनशील,निर्भीक,विनम्र और परोपकारी बनाता है  और उसके व्यक्तित्व में निखार आता है।गुणों का विकास होता है। दूसरी ओर अज्ञानी मनुष्य में स्वार्थ,क्रूरता,अशांति, भय और विनाश की वृद्धि होती है ज्ञान से हम अपने को और दूसरे को पहचान पाते है।सही गलत की पहचान कर साक्षी हो निर्णय ले पाते है। विवेक से काम लेते हैं ज्ञानी  ही परमात्मा के साथ का अनुभव कर पाते हैं ज्ञान मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को सुखद बना सकते है और साथ साथ दूसरों के जीवन को भी।परंतु अज्ञान हमें हमारी क्षमता का दुरुपयोग करने हेतु प्रेरित करता है। अज्ञान के कारण हम मोह माया में उलझते जाते है और सांसारिकता में बंधते जाते है  और विकर्म  कर बैठते और परमात्मा से दूर हो जाते है। अब हमें खुद ही निर्णय लेना है कि हम कौन?  ओम शांति।

कैसे जियें सात सितारा जीवन

सात सितारा जीवन का अर्थ है  सरल,सहज,सुखद स्वस्थ,सुंदर,सम्पन्न और समर्थ जीवन। अच्छी सोच और परमात्मा की शक्ति के इस तरह के जीवन की कल्पना भी नहीं का सकते। अच्छी सोच हमारे में पोसिटिव एनर्जी का संचार करती है और हम स्वस्थ फील करते हैं अथार्त स्वस्थ मन और स्वस्थ शरीर मिल कर जीवन को सुंदर बनाते हैं। प्रकृति का नियम है  जो हम उसे देते हैं वह कई गुणा  होकर हमारे पास लौट आता है जैसे अगर हमसे खुशी की तरंगें फैलेंगी तो वह हमारी खुशी को कई गुना बढ़ा सकती है तभी तो कहते है कि दान दो।अब धन दान हो या खुशियों का दान बढ़ना ही है। और जब हुम् अपने जीवन को बनाते 2 दूसरो की मदद करते हैं और उन्हें खुशी देते हैं तो हम दुआओं के पात्र बन जाते है। यह दुआएं हमारे जीवन में निखार लाती हैं और हमारे  में आत्मविश्वास का संचार करती हैं और हम फील करते हैं कि हम किसी की मदद करने में सक्षम हैं इसलिए यह जरूरी नहीं  कि किसी की मदद से पहले हमें शिखर पर पहुँचना जरूरी है किसी के मदद करना एक सीढ़ी के समान है जिससे  हम साथ साथ ऊपर चढ़ते जाते हैं और सहयोगी बनते जाते हैं साथ साथ परमात्मा की दुआओं के पात्र बनते जाते हैं और सफल

हमारे पूर्वज देवता या बंदर

हमारे पूर्वज देवता या बंदर आपने कभी आम के पेड़ पर नींबू को उगते देखा है   फल तो  बीज से ही निकलता है। इस सृष्टि पर अलग अलग वेराइटी है। फल फूल पशु पक्षी और मनुष्य सब प्रकृति की देन है और इसमें मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ  रचना है जो प्रकृति को भी बदल सकती है यानि मनुष्य और प्राकृति एक दूसरे के साथी है। सृष्टि रचना के समय दोनों ही सतोप्रधान थे। मनुष्य सतोप्रधान थे यानि सातों गुनो से  भरपूर थे जैसे पवित्रता ,ज्ञान,सुख, शांति,शक्ति,प्रेम और आनंद और इन गुणों के  कारण उनमे दैवीय गुण जैसे धैर्यता,नम्रता,सहनशीलता,शीतलता, हर्षितमुखता विधमान थे और इसलिए वह देवता कहलाये। मनुष्य की शारीरिक बनावट आज भी वही है परंतु गुणों के अभाव के कारण आज वे देवता की जगह मनुष्य  कहलाते हैं। वास्तव में मनुष्य जाति और पशु जाति दोनों बिल्कुल अलग हैं  आज मनुष्य अपना कल भूल गया है उसके गुण और शक्तियां कम होने  से उनकी जगह विकारो ने ले ली है जैसे काम क्रोध लोभ मोह अहंकार ईर्ष्या द्वेष नकल आदि ओर क्योकि बंदर में सर्वाधिक विकार होते है तो वह अपनी तुलना बंदर से कर बैठा है और अपने को बंदर का ही श्रेष्ठ रूप मानने लगा और अपने पूर

मुक्ति का सहज मार्ग

अदब से चलना है, दैवी फसीलत को याद रखना है। मीठा बनना है। प्यार से चलना है सबसे। छोटे बड़े की समझ रखनी है, सीखना है अपने से आगे वालो से। समय बचाना है, वैरीफाई कराना है हर बात मे हम कहा ं तक ठीक है, और क्या ऐसा परिवर्तन करे जो मार्ग सहज हो जाए और मेहनत से छूट जाए। मत लेनी है। बाप का मददगार बनना है, जिम्मेवार बनना है, श्रीमत को गंभीरता से समझना है, पीहर घर ससुर घर दोनों का कल्याण करना, अंदर बाहर एक रहना है, अनेक जन्मों के हिसाब को समझना है, एक दम साधारण बनना है, बनावट दिखावा छोड़ देना है, सीधी सच्ची बात करनी है, वाणी में महसूसता भरनी है,सभी आत्माओं का अपने जीवन में महत्व समझना है, उन्हें दिल से शुक्रिया करना है और अपनी भूलों की क्षमा याचना करनी है,,,,,,,,, जैसे कह सकते हम आपको समझ नहीं पाए, आपने बचपन से हमें ठीक राय दी, हम अपनी धुन में रहें, आज हमने घर की वैल्यू, अपनों की वैल्यू,अच्छे कर्म की वैल्यू ,अपनी विशेषता की वैल्यू को हमनें जान लिया है , हमें सब कुछ रिएलाइज कराने वाला, ऊँची समझ देने वाला एक परमात्मा बाप है,वो ही समोच्च है, उन्हें याद करने से हमारा हृदय शुद्ध होता है, हमारी