परमात्मा के विषय में भ्रान्तियाँ:- सुख दुख वही देता है। वो चाहे तो किसी को राजा बना दे, वो चाहे तो किसी को रंक बना दे। यह कहकर हम अपने कर्मों की जिम्मेवारी से छूट जाते, चाहे पहले जन्मों की, चाहे अब श्रेष्ठ कर्म के जो पुराने खाते को खत्म कर सकते हैं उसकी। हम यह भूल जाते है की भाग्य लिखने की कलम कर्म है जो हमारे हाथ में है।वर्तमान श्रेष्ठ कर्मो में इतनी शक्ति है कि वह हमारे पिछले विक्रमी को दग्ध करने की शक्ति रखते है। एक मनुष्य आत्मा अथवा अन्य प्राणीयों में यही मुख्य अंतर है कि मनुष्य आत्मा विचारशील है, उसमें रचना करने की शक्ति है। मन को सुमन बनाना और बुद्धि को ऊंच श्रेष्ठ बनाना यह मनुष्य के अपने ही हाथ में हुआ। बुद्धि की निर्णय शक्ति और परख शक्ति के द्वारा हम चयन कर सकते है कि जीवन में आने वाली परिस्थितियों मे क्या प्रतिक्रिया करें जिससे हम से कोई नये विकर्म न बनें। हमें परमात्मा ने ज्ञान दिया, श्रेष्ठ मत दी, कर्मों की गुहा गती समझाई। कर्म अ। कदम कदम पर हमें राह दिखाई। हमें दिव्य बुद्धि दी। सद् विवेक दिया। हमारा मार्ग निष्कंटक किया। हमें प्रत्यक्ष फल की प्राप्ति कराई। ह