ज्ञान अपने पे लागू करना है जैसे अपेक्षा रखना और दुःखी होना गलत है। पर ये बात हमें. खुद पे लागू करनी है दूसरों पर नहीं। हम जानते अपेक्षा होना स्वभाविक है इसलिए हमें खुद को संमपन्न बनाना है और दूसरो की.अपेक्षाओं को पूरा ज़रूर करना है,सभी को सुखी और संतुष्ट करना है, स्नेह निभाना है ,अपना कर्तव्य पूरा करना है। खुद को सम्पन्न और संतुष्ट रख सकेगें तब दूसरों को कुछ दे सकेगें। अपेक्षा न रखने का भाव ये है कि जब दूसरों को देखने लगते तो अपनी शक्तियां भूल जाते.है ,भूल जाते है कि हमें देना है। दे तब पाएंगे जब अपने शुद्ध नशे में रहेंंगे। करते क्या.है अपना part और उससे होने वाली प्राप्ति भूल जाते है। सृष्टि चक्र के समय अनुसार अभी सभी को बड़ा ,ऊंच और महान बनना है,परमपवित्र और शुद्ध बनना है,ये भूल जाते है। कभी दूसरों को.बहुत छोटा और हीन देखते है और सोचते हम ही करने.वाले है ,हमारे बिना इनका काम नहीं चलेगा और ये सोच कर अभिमान में आ जाते है और उनका अपमान करने लगते. है,उन्हें नीचे.गिराने.लगते है। कभी दूसरों को बहुत बढ़ा देखने लगते है,कि ये बहुत सम्पन्न है ,हमें कुछ करने की ज़रूरत नहीं। अभी समय अनुसार सभी.