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Showing posts from April, 2020

वर्तमान समय अनुसार श्रेष्ठ स्मृति और स्व परिवर्तन

इस ब्राह्मण जीवन में कई बार चलते चलते कई प्रश्नो में मन घिर जाता है,आज हम उन्ही पर कुछ चर्चा करेंगे। जीवन में बोझ  का कारण क्या है ,आखिर भी क्या सेवा करे और किसकी सेवा करें जो हलके सेहतमंद और सफलता मूर्ति रहे। बाबा कहते है तुम आत्माओं  का कनेक्शन प्रकृति से निरंतर है ,आत्मा ने पाप पुण्य शरीर द्वारा ही किये है तोह फल भी शरीर द्वारा ही आत्मा भोगती है ,और कर्म एक ऐसी चीज़ है जो निरंतर  आआत्स््स््स््स््स्स्स्् जुड़ा हुआ है ,तौर याद भी ऐसी चीज़ है जो आत्मा से निरंतर जुडी हुई है ,आत्मा किसी न किसी बात को ,किसी न किसी स्मृति को याद ज़रूर करती है. तो क्यों न अपने कर्म और स्मृतियों को ऊँचा उठा ले और सहेज योगी बन इस शरीर रुपी प्रकृति सहित आत्मा को पावन  बना दे.अब अगला प्रश्न उठता है कौन से ऐसे कर्म करे ाजो ऊंच कहलाए और कोनसी ऐसी स्मृति हो इस दुनिया से पार ले जाए?कर्मो का चयन बहुत सरल है जिसमे हमारे अपने रोज़मर्रा के निजी कर्म के साथ जो भी हमारे सम्बन्ध संपर्क में आता है उसकी सतुष्टता उनको हमारे द्वारा कोई न कोई ईश्वरीय गुण  की अनुभूति ,जो ही उनकी उन्नति का मार्ग खोलेगा,हिम्मत दिलाएगा,स्वमान बढ़

मनोबल की शक्ति

https://www.ajabgjab.com/2017/03/millionaires-life-changing-habits-in-hindi.html शरीर वैसे हाड़ - माँस से बना दिखाई देता है। इसे मिट्टी का पुतला और क्षणभंगुर कहा जाता है , परन्तु इसके भीतर विद्यमान जीवटता को देखते हैं तो कहना पडेगा कि उसकी संरचना अष्ट धातुओं से भी मजबूत तत्वों द्वारा मिलकर बनी हुई है। छोटी - मोटी , टूट - फूट , हारी - बीमारी तो रक्त के श्वेतकण तथा दूसरे संरक्षणकर्ता , शामक तत्व अनायास ही दूर करते रहते हैं , परन्तु भारी संकट आ उपस्थित होने पर भी यदि साहस न खोया जाय तो उत्कट इच्छा शक्ति के सहारे उनका सामना सफलतापूर्वक किया जा सकता है। निश्चित ही मृत्यु की विभीषिका और अनिवार्यता से इन्कार नहीं किया जा सकता , न ही विपत्ति का संकट हल्का करके आँका जा सकता है , परन्तु इतना होते हुए भी जिजीविषा की - जीवन आकाँक्षा की - सामर्थ्य सबसे बडी है और उसके सहारे संकटों को पार किया जा सता है। जीवन के लिए संकट प्रस्तुत करने वाले क्षण बहुत लोगों