इस ब्राह्मण जीवन में कई बार चलते चलते कई प्रश्नो में मन घिर जाता है,आज हम उन्ही पर कुछ चर्चा करेंगे। जीवन में बोझ का कारण क्या है ,आखिर भी क्या सेवा करे और किसकी सेवा करें जो हलके सेहतमंद और सफलता मूर्ति रहे। बाबा कहते है तुम आत्माओं का कनेक्शन प्रकृति से निरंतर है ,आत्मा ने पाप पुण्य शरीर द्वारा ही किये है तोह फल भी शरीर द्वारा ही आत्मा भोगती है ,और कर्म एक ऐसी चीज़ है जो निरंतर आआत्स््स््स््स््स्स्स्् जुड़ा हुआ है ,तौर याद भी ऐसी चीज़ है जो आत्मा से निरंतर जुडी हुई है ,आत्मा किसी न किसी बात को ,किसी न किसी स्मृति को याद ज़रूर करती है. तो क्यों न अपने कर्म और स्मृतियों को ऊँचा उठा ले और सहेज योगी बन इस शरीर रुपी प्रकृति सहित आत्मा को पावन बना दे.अब अगला प्रश्न उठता है कौन से ऐसे कर्म करे ाजो ऊंच कहलाए और कोनसी ऐसी स्मृति हो इस दुनिया से पार ले जाए?कर्मो का चयन बहुत सरल है जिसमे हमारे अपने रोज़मर्रा के निजी कर्म के साथ जो भी हमारे सम्बन्ध संपर्क में आता है उसकी सतुष्टता उनको हमारे द्वारा कोई न कोई ईश्वरीय गुण की अनुभूति ,जो ही उनकी उन्नति का मार्ग खोलेगा,हिम्मत दिलाएगा,स्वमान बढ़