Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Avyakt

सच्ची उपासना और पूजा क्या है।

सच्ची उपासना और पूजा क्या है। हर व्यक्ति को अपनी विधि से पूजा का अधिकार है  और भगवान को सभी की पूजा स्वीकार्य है। वास्तव में सच्ची उपासना है समाज मे शांति स्थापित करना, संसार से दीनता,भूख और हिंसा को दूर करना ।भेदभाव, अनादर और उपेक्षा भी हिंसा की श्रेणी में आते है। शिवलिंग पर दूध अर्पित करने की बजाय यह दूध उपेक्षित शिशु को मिले यह सच्ची उपासना है क्योंकि यदि जीव व्यथित है तो शिव कैसे प्रसन्न हो सकते है हम सब उनकी सन्तान है। जल शरीर का संचालक है इसके अभाव में मनुष्य और पशु पक्षी व्यथित होते है। तो जल का सर्वोत्तम उपयोग शिवलिंग पर अर्पित करना  नही।बेलपत्र और धतूरा शिव को अति प्रिय है ।परंतु उसका अर्थ है मनुष्य अपनी बुराइयां शिव को अर्पित करे। भगवान की सच्ची उपासना उसके समीप आकर उन जैसा बनना। समीप वही आ सकता जो पवित्र है। फिर सिमरन करो तो वो सुनता है। पुकारो तो आता है। पूजा तो माध्यम है याद का। उपासना वही है जिसमे वह अपने को अपने आराध्य से अलग न समझे कोई अपवित्र विचार न हो, प्रेमपूर्ण ह्रदय हो तो वह समीप है.हर क्षण प्रेमपूर्ण रहे यह तभी संभव है जब वो अपने को पहचाने और पहले  स्वयं से प्रेम

परोपकार का सुख लौकिक नहीं, अलौकिक है

  परोपकार का सुख लौकिक नहीं , अलौकिक है | वह मनुष्य नहीं , दीनदयालु के पद पर पहुँच जाता है | वह दिव्य सुख प्राप्त करता है | उस सुख की तुलना में धन - दौलत कुछ भी नहीं है | परोपकार दिखने में घाटे का सौदा लगता है | परंतु वास्तव में हर तरह से लाभकारी है | महात्मा गाँधी को परोपकार करने से जो गौरव और समान मिला ; भगत सिंह को फाँसी पर चढ़ने से जो आदर मिला ; बुद्ध को राजपाट छोड़ने से जो ख्याति मिली , क्या वह एक भोगी राजा बन्ने से मिल सकती थी ? कदापि नहीं | परोपकारी व्यक्ति सदा प्रसन्न , निर्मल और हँसमुख रहता है | उसे पश्चाताप या तृष्णा की आग नहीं झुलसाती | परोपकारी व्यक्ति पूजा के योग्य हो जाता है | उसके जीवन की सुगंध सब और व्याप्त हो जाता है,़ प

हम कौंन सा मार्ग अपनाएं

वैसे तो हम सभी अपने को ज्ञानी समझते हैं परंतु ज्ञान क्या है यह समझने के लिए ज्ञान की विशेषताओ को समझना आवश्यक है। ज्ञान ही व्यक्ति को उदार ,सहनशील,निर्भीक,विनम्र और परोपकारी बनाता है  और उसके व्यक्तित्व में निखार आता है।गुणों का विकास होता है। दूसरी ओर अज्ञानी मनुष्य में स्वार्थ,क्रूरता,अशांति, भय और विनाश की वृद्धि होती है ज्ञान से हम अपने को और दूसरे को पहचान पाते है।सही गलत की पहचान कर साक्षी हो निर्णय ले पाते है। विवेक से काम लेते हैं ज्ञानी  ही परमात्मा के साथ का अनुभव कर पाते हैं ज्ञान मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को सुखद बना सकते है और साथ साथ दूसरों के जीवन को भी।परंतु अज्ञान हमें हमारी क्षमता का दुरुपयोग करने हेतु प्रेरित करता है। अज्ञान के कारण हम मोह माया में उलझते जाते है और सांसारिकता में बंधते जाते है  और विकर्म  कर बैठते और परमात्मा से दूर हो जाते है। अब हमें खुद ही निर्णय लेना है कि हम कौन?  ओम शांति।

भावना से कर्तव्य ऊंचा है

https://evirtualguru.com/hindi-essays/ भावना से कर्तव्य ऊंचा है Bhavna se Kartavya uncha hai  संसार में असंख्य प्राणी हैं। उनमें सर्वाधिक और विशिष्ट महत्व केवल मनुष्य नामक प्राणी को ही प्राप्त है। इसके मुख्य दो कारण स्वीकार किए जाते या किए जा सकते हैं। एक तो यह कि केवल मनुष्य के पास ही सोचने-समझने के लिए दिमाग और उसकी शक्ति विद्यमान है, अन्य प्राणियों के पास नहीं। वे सभी कार्य प्राकृतिक चेतनाओं और कारणों से करते हैं, जबकि मनुष्य कुछ भी करने से पहले सोच-विचार करता है। दूसरा प्रमुख कारण है मनुष्य के पास विचारों के साथ-साथ भावना और भावुकता का भी होना या रहना। भावना नाम की कोई वस्तु मानवेतर प्राणियों के पास नहीं हुआ करती। भावनाशून्य रहकर वे सिर्फ प्राकृतिक नियमों से प्रेम, भय आदि का प्रदर्शन किया करते हैं। स्पष्ट है कि ये ही वे कारण हैं, जो मानव को सृष्टि का सर्वश्रेष्ट प्राणी सिद्ध करते हैं। मानव जीवन में जो कुछ भी सुंदर, अच्छा और प्रेरणादायक है, वह भावनाओं के कारण या भावना का ही रूप है। मानव-जीवन में जो भिन्न प्रकार के संबंध और पारस्परिक रिश्ते-नाते हैं, उनका आधारभूत कारण भी भ

मनोबल की शक्ति

https://www.ajabgjab.com/2017/03/millionaires-life-changing-habits-in-hindi.html शरीर वैसे हाड़ - माँस से बना दिखाई देता है। इसे मिट्टी का पुतला और क्षणभंगुर कहा जाता है , परन्तु इसके भीतर विद्यमान जीवटता को देखते हैं तो कहना पडेगा कि उसकी संरचना अष्ट धातुओं से भी मजबूत तत्वों द्वारा मिलकर बनी हुई है। छोटी - मोटी , टूट - फूट , हारी - बीमारी तो रक्त के श्वेतकण तथा दूसरे संरक्षणकर्ता , शामक तत्व अनायास ही दूर करते रहते हैं , परन्तु भारी संकट आ उपस्थित होने पर भी यदि साहस न खोया जाय तो उत्कट इच्छा शक्ति के सहारे उनका सामना सफलतापूर्वक किया जा सकता है। निश्चित ही मृत्यु की विभीषिका और अनिवार्यता से इन्कार नहीं किया जा सकता , न ही विपत्ति का संकट हल्का करके आँका जा सकता है , परन्तु इतना होते हुए भी जिजीविषा की - जीवन आकाँक्षा की - सामर्थ्य सबसे बडी है और उसके सहारे संकटों को पार किया जा सता है। जीवन के लिए संकट प्रस्तुत करने वाले क्षण बहुत लोगों