Skip to main content

आत्मा का परमात्मा से दिव्य संवाद



बच्चे कहते है,हम सारा दिन बैठ कर थक जाते है.

बाप कहते है,मै तुम्हें सब कुछ बैठे बिठाएं दूंगा,तुम्हें मेहनत करने की ज़रूरत नहीं।

बच्चे कहते. है. मेहनत करने से सुख मिलता है,आत्मनिर्भरता.अच्छी लगती है।

बाप कहते. है दुनिया बहुत गंदी है।

बच्चे कहते है अच्छाई भी तो है दुनिया में,हम अच्छाई उठाएंगे।

बाप कहते है उसके लिए तुम्हारी बुद्धि बहुत तीक्ष्ण चाहिए।

बहुत ऊंची भावनाएं ,बहुत ऊंचे विचार,बहुत ऊंचे कर्म चाहिए।

बच्चे कहते है.हां बाबा जो आपके गुण और शक्तियां है वही हमारी है,हम भी आपकी तरह बनेंगे।

पर बच्चे तुम हो मेरी तरह,मेरे सभी titles आपके ही है।

बच्चे कहते है हम उन्हें कर्म में लाकर अपनी और आपकी शान बढ़ाना चाहते है।हम अपनी खुद की पहचान बनाना चाहते है।

हमारे कर्म से हम अपनी पहचान देना चाहते है।

बाप कहते है ,बच्चे इस दुनिया बहुत दुख,धोखा है।भ्रष्टाचार,अन्दर बाहर एक नहीं है सब।

बच्चे कहते है,हम अपना श्रेष्ठ कर्म करेंगे और हमें.देख दूसरे भी बदल जाऐंगें।

बच्चे इसमें समय लगता है जो आत्माएं परिवर्तन हो और उनमें निश्चय बैठे।

हां बाबा कोई हर्जा नहीं हम बीज डालते जाएंगें ,आप समय पर फल निकालना।

हम अपेक्षा नही रखेंगें।अपने कर्म को,कर्म फल को समर्ण करते रहेंगें।आप देख लेना।

बाप कहते अच्छा बच्चे जैसे आप ठीक समझो।जी हजूर।






Comments

Popular posts from this blog

ज्ञान अपने पे लागू करना है

  ज्ञान अपने पे लागू करना है  जैसे अपेक्षा रखना और दुःखी होना गलत है। पर ये बात हमें. खुद पे लागू करनी है दूसरों पर नहीं। हम जानते अपेक्षा होना स्वभाविक है इसलिए हमें खुद को संमपन्न बनाना है और दूसरो की.अपेक्षाओं को पूरा ज़रूर करना है,सभी को सुखी और संतुष्ट करना है, स्नेह निभाना है ,अपना कर्तव्य  पूरा करना है। खुद को सम्पन्न  और संतुष्ट रख सकेगें तब दूसरों को कुछ दे सकेगें। अपेक्षा न रखने का भाव ये है कि जब दूसरों को देखने लगते तो अपनी शक्तियां भूल जाते.है ,भूल जाते है कि हमें देना है। दे तब पाएंगे जब अपने शुद्ध नशे में रहेंंगे। करते क्या.है अपना part और उससे होने वाली प्राप्ति भूल जाते है। सृष्टि चक्र के समय अनुसार अभी सभी को बड़ा ,ऊंच और महान बनना है,परमपवित्र और शुद्ध बनना है,ये भूल जाते है। कभी दूसरों को.बहुत छोटा और हीन देखते है और सोचते हम ही करने.वाले है ,हमारे बिना इनका काम नहीं चलेगा और ये सोच कर अभिमान में आ जाते है और उनका अपमान करने लगते. है,उन्हें नीचे.गिराने.लगते है। कभी दूसरों को बहुत बढ़ा देखने लगते है,कि ये बहुत सम्पन्न है ,हमें कुछ करने की ज़रूरत नहीं। अभी समय अनुसार सभी.

माननीय बनना

मान मांगने से नहीं मिलता। लम्बा समय.श्रेष्ठ आचरण मनुष्य को माननीय बनाता है। सम्बंध में थोड़ा झुकना भी पड़ता है,अपनी मत छोड़नी भी पड़ती है।दूसरों को आगें करना भी होता है।निभाना भी पड़ता है।एक श्रेष्ठ. लक्षय को सामने रखना होता है। विश्व परिवर्तन, देवता बनना या महान कार्य की सफलता जिससे सभी प्रसन्नता और संतुष्टता का फल खाए।